( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )
मैं जानत सुख उन चरणमें ॥ टेक ॥
व्याघ्र-कडासन आसन जिनके
मुंडमाल शोभे गलियनमें || १ ||
सीस जटा गंगाकी धारा ,
चंद्र बसे जिनके भालनमें ॥२ ॥
त्रिशुल डमरू कर शंख बिराजे ,
रहत मगन शिव रामभजनमें ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे वैष्णवके ,
मुकुटमणी शोभत इस जनमें ॥४ ॥
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