( तर्ज - संगत संतनकी करले ० )
जौहरी होनेको चटका ,
जाकर फूगेसे लटका ॥ टेक ॥
खेचर - भूचर मुद्रा धारी ,
लाल रंगको पाई ।
सब लोगनको वही दिखाकर ,
सब दुनिया झुकवाई ॥ १ ॥
शिष्य बनाकर द्रव्य पछाड़ा ,
नर्कनिशान कमाई ।
काम क्रोध तो लपटे अंदर ,
बाहर बन गया साँई ॥ २ ॥
पूरक कुंभक पता नहीं पर ,
झूठ समाधी लाई ।
तनपर भार लिया मालाका ,
जपने समय न पाई || ३ ||
कहता तुकड्या छोड ढोंग यह ,
संतनके सँग लागो ।
सच्चा लाल तनूमें तुम्हरे ,
गुरू - ग्यानसे जागो ॥४ ॥
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