( तर्ज - पानसे कहना हमारा ० )
मोक्ष - मुक्ती , स्वर्ग , भूमी ,
निज स्वरूप में है नहीं || टेक ||
नाम नहि अरु रूप नहि ,
न निशान भी अरु ठान थी ।
है न जाना और आना ,
मरण जीना है नहीं || १ ||
पुण्य नहि चाहता तुझे ,
अरु पाप नहि लगता तुझे ।
काल नहि छूता तुझे ,
अरु आयु - बंधन है नहीं ॥२ ॥
मर्दपन तुझमें नहीं ,
नामर्द तू होता नहीं ।
नर नहीं , नारी नहीं ,
तु जीवभी तो है नहीं || ३ ||
नित्य है आनंदघन ,
अक्षय सदाही एकसा
कहत तुकड्या सोच कर ,
मायाभि तुझमें है नहीं ॥ ४॥
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