( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )
लागे अनहदकी धुन प्यारी ॥ टेक ॥
बज बाँसुरी मधुरी मधुरसी ,
चढ़त बढ़त अँखियनकी तारी ॥ १ ॥
कोयल बोले मनुवा डोले ,
बाजत घनन घड्याल तुतारी ॥ २ ॥
चित एकांत , अंत ममताका ,
लागत समरस वृत्ति बहारी ॥ ३ ॥
तुकड्यादास कहे सुध लागी ,
मोरे मन मीठि लगत धुनकारी ॥४ ॥
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