( तर्ज - लगा ले प्रेम ईश्वरसे ० )
अरे गाफिल ! कहाँ सोये ?
यहाँ तो चोर लूटेंगे ।
फँसाकरके तुम्हें जगमें ,
पहुँच जमद्वार पीटेंगे ॥ टेक ॥
तुम्हें नहि क्या खबर इसकी ?
कई तो देखते हो तुम ।
चले जाते हैं मरघटमें ,
तुम्ही फिर कैसे जूटेंगे ? ॥१ ॥
कई बूढे , कई ज्वाने ,
कई जोगी , कई उमराव ।
सभीका एकही रास्ता ,
न कोईभी हैं छूटेंगे ॥ २ ॥
न पैसाही बचावेगा ,
न साथी गोत आवेगा ।
धरो एक सद्गुरू - मारग ,
तो जमके द्वार खूटेंगे ॥३ ॥
वह तुकड्यादास कहता है ,
प्रभूके नाम ना भूलो ।
चढाओ ग्यानका अंजन ,
तभी तो काल ऊठेंगे ॥ ४ ॥
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