( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )
हो हरि ! पावन
सहज सहजमे ॥ टेक ॥
कहाँतक साधन साधूँ निराले ?
दे दर्शन एक पलक
लहजमे || १ ||
तुम जानत घटघटकी तारी ,
कर करुणा मिलवा ले रजमे ॥२ ॥
बिन भक्ती कोइ ना जानूँ मैं ,
भूख बढी दर्शनकी मनमें || ३ ||
तुकड्यादास कहे तोरि अँखियाँ ,
करत नाश सब दोष लहजमें || ४ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा