( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० )
भागसे तेरे मुसाफिर !
देह मानवकी मिली ॥ टेक ॥
मोल करके जतन कर तू ,
खो मती बिरथा घडी ।
जा समय मिल जायगा ,
भज रामकी पद - अंगुली ।। १ ।।
एक क्षण है मोलका ,
मिलता नही फिर जो गया
देखलो हरिको नजरभर ,
कर भली अँखियाँ खुली || टेक ||
दु:खमय संसार है,
इससे न रख नाता कभी
पछतायगा तू आखरी
संसार है पूरी शुली || ३ ||
कहत तुकड्यादास हो तू ,
साधुओंके चरणका
नेकिसे व्यवहार कर ,
भक्ती करो फूली - फली ॥
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