( तर्ज - क्यों नहीं देते हो दर्शन ० ) ?
जो कसुर होगा हमारा ,
माफ कर साँई ! सभी ॥टेक ॥
छोडकर घरबारको ,
धन - माल साथी - यारको ।
हूँ अकेला जगतमें ,
क्यों ना दया आती अभी ? ॥१ ॥
ढुंढता हूँ बनबनों में ,
खोजता तुझको यहाँ ।
बेचैन हूँ तेरेबिना ,
मिल जा मेरे प्यारे नबी ! ॥२ ॥
हूँ भटकता पलक में ,
नहि नींद आती सूखसे ।
आँखियाँ नही लगती जरा ,
टुक देख लो मुझको कभी ॥३ ॥
कहत तुकड्या अर्जको ,
बेगर्जसे ना छोडिये ।
है दया तुममें भरी ,
दीदार देना हो ! कभी || ४ ||
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