( तर्ज - नैनमें बस जा गिरिधारी ० )
क्यों फिरता नर !
जग - विषयनमें ? ॥ टेक ॥
कौन सुखी इस सँगसे देखा ?
सोच जरा अपनेही मनमें ॥१ ॥
राजा - महाराज बडभारी ,
धूल भये इस झूठ लछनमें ॥ २ ॥
फाक भये कई जोगि - संन्यासी ,
बहल गये मायाके बनमें ॥३ ॥
तुकड्यादास कहे हरि भज तू ,
पावे सौख्य अखंडित तनमें ॥४ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा