( तर्ज - ईश्वरको जान बंदे ० )
सुनले सुजान भाई !
ईश्वर सभी जगा है । ?
काहेको ढूंढता तू?
तुजमेभि वह लगा है ॥ टेक ॥
कहि टूट जात छाया ?
वैसीहि है यह माया ।
मायाभि वह बना है ,
फिर डर कहाँ लगा है ? ॥१ ॥
अग्यानसे जगतको ,
बूरी लगे यह व्याधी
बस ग्यानियोंको वह ही ,
सुखकी करे जगा है || २ ||
जब संतसंग पाये ,
अग्यान दूर होकर ।
तब व्याधि ना रहेगी ,
निर्मल बने सगा है ॥३ ॥
तुकड्या कहे यह जानो ,
ईश्वर न भिन्न जी से ।
विश्वास दृढ बनाओं ,
वह सत्यम रंगा है ॥ ४ ॥
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