( तर्ज- अलमस्त पिलाया प्याला ० )
मत धरो करमका फंदा ।
पुरुषार्थ बनाओ बंदा जी ॥ टेक ॥
पुरुषार्थहिसे बना करम यह ,
धरो उसीका छंदा ।
कुछ करनी , कुछ करमगती है ,
पुरब जनमका धंदा जी ॥ १ ॥
मनुज - जनम यह मिले न फिरसे ,
कर्म करोगे मंदा ।
करो ग्यान सत् - संग साधकर ,
तोड़ करमका फंदाजी ॥२ ॥
जो कुछ होय आगला पिछला ,
ना लख मनका गंदा ।
तुकड्यादास कहे जागे हो ,
करो भजन आनंदा जी ॥३ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा