( तर्ज - अलमस्त पिलाया प्याला ० )
क्यों नाहक धोखा खाया ?
यह बुरी लगाकर माया रे ॥टेक ॥
दुर्लभ वह मानुजका चोला ,
पुनसे तुझको पाया ।
काम क्रोध शत्रुके वशमें ,
होकर खोई काया रे ॥ १ ॥
किस कारणसे आया जगमें ,
समझ जरा नहि पाया ।
पाप पाप कर बुरे तुने ये ,
सारा जनम गमाया रे ॥२ ॥
सुनले भाई ! जरा गुरुकी ,
शरण लगा ले काया ।
सत् संगतमें मस्त रहाकर ,
तोड़ झुठाई छाया रे ॥३ ॥
तुकड्यादास कहे जो भजते ,
उनकी उधरी काया ।
जाग जागरे अभी मुसाफिर !
क्यों जगमें बहलाया रे ? ॥४ ॥
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