( तर्ज - जिंदगी सुधार वंदे ० )
है कहाँ मुकाम तेरा ?
कौन नाम धामका ?
कोइ फिरे बनके माँही ,
कोइ जोग अंग रमाई ।
कोइ देखे ध्यानमाँही ,
लौ लगाय रामका || १ ||
कोइ कहे ‘ सबके अंदर '
कोइ कहे देखो मंदर ।
संत कहे ' तुमही ईश्वर ,
रूप तेरो श्यामका ' ॥
कोइ धुनी साध देखे ,
कोइ प्राणायम भाखे ।
कोइ धूम्रपान करके ,
लौ लगात नामका ॥
माने तो किसीका माने ?
जाने तो कहाँपे जाने ? ।
कहे दास तुकड्या हमने ,
प्रेम किया प्रेमका ॥
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