( तर्ज - भारत शानदार हो मेरा )
मनमें राम , काम हो कर में ||
मन में ० ॥ टेक ॥
अपने बलपर , रहे जगत में ,
पराधीन नहि , धन मे
मुफ्त न खाये , भीख न माँगे ,
प्रेम रखे हर घर में ॥ १ ॥
आओ बैठो सब मिल गाये ,
प्रेम-प्रभू को स्वर में ।
माला - कण्ठी शान्ति सुखावह
पड़ी रहे अन्दर में ॥ २ ॥
बाहर देख - दिखौआ ना हो ,
रहे इन्सानी स्तर में ।
जैसे सती - पती की प्रीती
को समझे बाहर में ? ॥ ३ ॥
घरमे हो बाहर में वैसा ,
प्रेम भरा लोगन में ।
तुकड्यादास भक्त वहि जानो ,
डुले विश्व - मन्दर में ॥ ४ ॥
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