तीरथों के बासियो!
तुम्हरा भी तो यह तीर्थ है?
लुटने को यात्रियों को ही
नही यह सिर्फ है || टेक ||
शील औ ईमानदारी
है पुजा भगवान की
क्या न संतो ने बतायी
यह तुम्हे ही शर्त है ? || १ ||
क्षेत्र में जो पाप करते ,
वह नहीं मिटता कमी |
भक्ति की धारा बहायी ,
साधु - सन्तों ने जहाँ
मूर्ख औरों को बनाकर ,
डूबता खुद धूर्त है ॥ २ ॥
खुद करो शुद्धाचरण ,
सबको सिखाओ सत्य हो ।
तुम बने गंगा के पत्थर ,
क्या चुकेगी गर्त है ॥३ ॥
तनुही बने फिर तीर्थही ,
वही होत सन्त - समर्थ है ॥४ ॥
पूर्व पुण्याई बडी थी ,
इसलिये स्थल यह मिला ।
कहत तुकड्या साधलो ,
नहि तो जनम यह व्यर्थ है ॥ ५ ॥
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