( तर्ज - सारी नाद तुम्हारे हाते )
यह सुंदर उपवन , उरळी कांचन
देख देख मन भाया
यहाँ निसर्ग उपचारों से होती ,
कंचनसी काया || टेक ||
हवा पानी फल - फूल और सब्जी ।
मिट्टीपट्टी करती राजी ।
सूर्यस्नान का महिमा सुंदर |
शांती दिल पाया ॥ १ ॥
भोजनही है दवादुवायें ।
कटी स्नान आरोग्य बढाये ।
नियमन जीवन में संयम कर ।
दुःख को भगवाया ॥ २ ॥
लाखों रोगी भोगी आये ।
यही उपचारों से सुख पाये ।
सुन्दर होती यहाँ प्रार्थना ।
हमने अजमाया ॥ ३ ॥
गौवे यहाँ की गर्व बढाती ।
कृष्ण जमाने को बतलाती ।
देख देख ललचाते जन मन ।
मोहती माया ॥ ४ ॥
जो रोगी को यहाँ आना है ।
वह योगी बनकर जाना है ।
निसर्ग ही भाता है उसको ।
उपदेश सुन पाया ॥ ५ ॥
राष्ट्रपिता गांधी ने इसको ।
दिया प्रेरणा जन के हितको ।
संत विनोबा की रहती है ।
सदैव ही छाया ॥ ६ ॥
जय नारायण , सुखबिर डाक्टर |
देखमाल रोगी के सुखकर |
कृष्णचंद्र , मणिभाई सेवक ।
उन्नति कर लाया ॥ ७ ॥
साधक बाळकोबा है त्यागी ।
देखभाल कर कण - कण जागी ।
तुकड्यादास कहे में ?
अनुभव लेकर गुण गाया ॥ ८ ॥
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