( तर्ज- राही मनवा दुःख की )
सदाचारबिन इस दुनिया में ,
कौन ठिकाना ।
झूठ तो नकली बाना है ।
मित्र है चारित्र्य अपना ,
उसको निभाना है ।
झूठ तो नकली बाना है । टेक ॥
आज जमाना झूठ करे ,
उसकी मंजिल दूर नहीं ।
एक समय वह आयेगा ,
रह जायेगा साच वही ।
भ्रम दूर बने जन जाग गये ।
मित्र है चारित्र्य अपना ,
उसकोही निभाना है ।
झूठ तो नकली बाना है ॥ १ ॥
रावण राज्य में राक्षस थे ,
उसमें विभीषणही निकला ।
पक्षी जटायुने खोज दिया
और उसीका प्राण चला ।
गर एक मिले सतीया भी कोई ।
मित्र है चारित्र्य अपना ,
उसकोही निभाना है ।
झूठ तो नकली बाना है ॥ २ ॥
आज वहि सखिया हो कोई ,
उसपे नजर ये जाने लगी ।
तुकड्यादास कहे क्रांती ,
उन वीरोंको बुलाने लगी ।
बढ़ जाये कदम नव युवकों का
मित्र है चारित्र्य अपना ,
उसकोही निभाता है ॥
झूठ तो नकली बाना है ॥ ३ ॥
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