प्रेम करना सीख लो ,
फिर कुछ नहीं बाकी रहा ।
नाथ भी खुश होगया ,
फिर और क्या साखी रहा ?
द्रौपदी के प्रेम से
रखी लाज जो जाती वही ।
प्रेम सीखा गोपियोंने ,
नच गया मोहन वहाँ ॥ १ ॥
बेर शबरी के थे झूठे ,
कौन नहि हैं जानता ?
प्रेम के मारे प्रभूने
खा लिये कहे ' वाहवा | ' ॥ २ ॥
था सुदामा भी दरिद्री ,
प्रेम था प्रभूसे जमा ।
वक्त जब आया , प्रभूने '
कनक धाम ' दिया महा || ३ ||
क्या कहूँ तारीफ उसकी ?
जो कोई सच प्रेम दे ।
कहत तुकड्या आज भी ,
देखा न कुछ कमती वहाँ ।। ४ ।।
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