( तर्ज - साधो सन्तनकी गति न्यारी )
बन्दे तप पर राज निहित है ॥ टेक ॥
जो चाहे शासक बन जावे ,
होती बूरी गत है ।
बिन चारित्र्य , सचाई , नीति ,
देश में नाचे भुत है ॥ बन्दे ! ॥१ ॥
अबके हई परीक्षा सबकी ,
दिन आये चिन्तित हैं ।
को जाने प्रभू भारत - माँ की ,
राखेगा |
इज्जत है ॥ बन्दे ! || २ ||
ग्यान-ध्यान तो सब कोई बोले
अपने को बिछुडत है ।
जहाँ कठिनतम बात खडी हो ,
निश्चित नहीं दे मत है । बन्दे || ३ ||
बड़े - बड़े हैं सवाल आगे ,
कौन लगावे सत् है ?
तुकड्यादास खासकर बोले
अब जनता की गत है ||
बन्दे! || ४ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा