( तर्ज - दिलमें हि नहीं जब शांति )
दिल आशक है तुझसे मिलने ,
अरमान करो पूरा मोहन !
न्यौछावर है तन - मन मेरा ,
बस ध्यान लगा तेरा
मोहन ! ॥ टेक ॥
दिल रूठ गया संसार से अब ,
दिखता न नजर में और कोई ।
बस तेरी झलक अँखियों में भरी ,
चाहे तार कि मार छूरा ,
मोहन ! || १ ||
तेरि सुन्दरता और माधुरियाँ ,
बस हदही करती है मुरली ।
पागल ही बनाती है दिलको ,
खुद बोल तो प्यारे जरा ,
मोहन ! || २ ||
जमुना के किनारे गोपिन में
और ग्वालन में संग - बालन में ।
तुकड्या कहे खेल गया गिरिधर !
क्यों भूल पडे मेरा
मोहन ! || ३ ||
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