( तर्ज - रिका नाम सुमर नर प्यारे )
दीन - दलित – दुःखो जनतामें ,
जिसका ख्याल न पहुँचा है ।
यद्यपि हो विद्वान या साधू ,
कर्म न उसका सच्चा है ||टेक||
सबकी आत्माको पहिचाने ,
सबपर प्रेम सरीखा हो ।
वहि ‘ मानव ’ जीवित है समझो ,
यद्यपि नहि कुछ सीखा हो ॥१ ॥
किसिपर संकट आय दौडकर ,
तन - मनसे सेवा करता ।
वही ' बीर ' समझा जाता ,
जो मौत पड़े पर नहि डरता ॥ २ ॥
जिधर - उधर है प्रेम बहाता ,
सबसे प्रेमका नाता है ।
कभी किसीका दिल न दुखे
यह दिलसे जिसको भाता है ॥ ३ ॥ '
मस्त ' वह ही जो सुख - दुख झेले ,
खिलाडी जीवन का ।
तुकड्यादास कहे यह बूटी - जो
पावे वहि किस्मत का ॥ ४ ॥
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