( तर्ज - हरि भजनाची रुची जयाच्या )
दरिद्र - भूखे को धन पाया ,
पागल ही हो गया
नाचने लगा होश खो गया ॥ टेक ॥
धन जिसका था , शहीद था वो ,
बडे कष्ट से लिया ।
आलसीयों के स्वाधिन किया ॥
जो धन को नहि पचा सके ,
धन जगह पर ही रह गया ।
और आपस में झगडा किया |
( तर्ज ) यह हुआ हाल ,
सम्हली नहि जाती खुशी ।
रोते है घरके लोग जिंदगी फसी ।
अपनी ही अक्कल अपने सिर पर बसी ।
ऐसा है स्वातंत्र्य का किस्सा ,
शत्रु फेर भिड गया ।
नाचने लगा होश खो गया ॥ १ ॥
समझ चाहिये ' राष्ट्रधर्म की ,
सदा सुरक्षा करे
देश यह भूषण बनकर फिरे ॥
अनाज पानी सदा खुशाली ,
उद्योगी जन बने
स्वर्ग हो भारत काया मने ॥
( तर्ज ) यह रहा जगह के जगह
हाल यह हुवा ।
आपस में मरने लगे द्वेष कर यहाँ ।
है कौन बड़ा किसका चलता है जुवा ।
धुंद हुये व्यसनों में ,
प्रायः शत्रु निकट आगया ।
नाचने लगा होश खो गया ॥ २ ॥
फिर वहि याद जगाने आया ,
अगस्त पंधरा वही ।
जहाँ स्वातंत्र्य मिला था सही ॥
हुशार हो , ऐ भारतवासी ,
नाम न जाये मिटा
शत्रु को दिया जाय सब हटा ||
(तर्ज)
हम होश सम्हाले करे प्रतिज्ञा पुरी ।
धन धान्य चैन हो , हो यद्यपि मजबुरी ।
तब राष्ट्र सुरक्षा सच होगी आखरी । |
तुकड्यादास कहे शहिदोंको ,
हमने वंदन किया ।
नाचने लगा होश खो गया ॥ ३ ॥
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