( तर्ज - साबरमती के सन्त तुने ० )
लाखो गरीब बैठे है दरबार तुम्हारे ।
मिलती है वहाँ शान्ति ,
जनता ही पुकारे ॥ टेक ॥
लहानूजी मेरे बाबा !
तू कौन ? बता दे ।
किस देवताने तुझको
मोहा है ? दिखा दे ।।
कुछ तेरे करिश्मों को ,
हम भी तो निहारे ।
मिलती है वहाँ शान्ति ० ॥ १ ॥
गाली में तेरी रंगत ,
तेरी मार में बर है ।
किसिको प्रसाद दे तो
बस वेही पार है ॥
कितने ही बिमारों को
अच्छा बना डारे ।
मिलती है वहाँ शान्ति ०॥ २ ॥
दिखता न तेरा भेख- कोई
जोगी गुसाँई ।
पर उनसे नहीं कमती
तेरी साधुता भाई !
किस अवलियाने तन - मन
बरदान से तारे ?
मिलती है वहाँ शान्ति ० ॥ ३ ॥
बरखेड का गुरुदेव तेरा
इष्ट बडा था ।
जंगल में तेरा डेरा
कई साल पड़ा था ॥
तुकडघा कहे ए बाबा !
अमर कीर्ति के तारे !
मिलती है वहाँ शान्ति ० ॥ ४ ॥
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