( तर्ज ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )
झूठोंकी संगत में जाना नहीं ,
नाहककी आफत उठाना नहीं ॥ टेक ॥
कौन कहेगा किस दिन
धोखा होगा घरके घरमें ?
निंदा किसिकी नहिं बोलो ,
बात चले पलभर में ।
बातों का इनसे ठिकाना नहीं ॥
नाहककी . ॥१ ॥
सच्चे भी होते हैं पागल ,
झूठोंकी संगत से ।
गुंडे दंडेवाले रहते ,
हरदम ही पंगत से ।
कहके भि इनको बताना नहीं ॥
नाहककी ॥२ ॥
दूरही से वंदन दुर्जनको ,
समज - उमजकर करना ।
तुकडयादास कहे मुंह फेरो ,
अपनी राह सुधरना ।
इनसे तो निपटो , लजाना नहीं ॥
नाहककी . ॥ ३ ॥
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