(तर्ज- ज्योत से ज्योत जाते चलो . )
शांती की बीना बजाते रहो ।
प्रेमसे सबको रिझाते रहो ॥ टेक ॥
सबके घरमे भेद पड़ा है ,
आपस में नहिं बनती
बूढा,बेटा,भाई - भाई ,
इनकी पल - पल छनती
किसकी भी बिगडी बनाते रहो ॥
प्रेमसे सबको ॥१ ॥
धरम करम को भूल गये हैं ,
स्वारथ सिरपर बैठा ।
उनके खातिर पाप करेंगे ,
बाप रहे या बेटा ।
ग्यानसे इनको जगाते रहो ॥
प्रेमसे सबको ॥२ ॥
छूत-अछूतों की मनमानी
झूठी बात चलायी ।
पीकर गांजा नशा चढाई
आलसने बहकायी ।
संतों की संगत दिलाते रहो ॥
प्रेमसे सबको ॥ ३ ॥
पिछडे जनको धोका देकर ,
उनसे लाभ उठाते ।
तुकड्यादास कहे ऐसे जन ,
जमघर पकड़े जाते ।
गीताकी बात सुनाते रहो ॥
प्रेमसे सबको ॥ ४ ॥
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