( तर्क - ज्योत से ज्योत जगाते चलो )
पोथी से पोथी झगडने लगी ।
प्रेमकी बातें बिगडने लगी ॥टेक ॥
अपने - अपने पंथके मारे ,
शांति न पायी सबने ।
बंधन है , चंदन - तालकका ,
कहाँ लगाना किसने ॥
रूढी की डोर जखडने लगी ॥
प्रेमकी बातें ॥१ ॥
मैं साधू कि तुम साधू
हो भेख बताते अपना ।
दिल तो है पापी दोनोंका ,
कहाँ सत्य का सपना ??
त्याग की निति अकडने लगी ॥
प्रेमकी बातें . ॥ २ ॥
दोनों भी पंडित हैं ग्यानी ,
आपस में कट मरते ।
कहता तुकडया खाते पीते ,
भला न किसका करते ॥
इनसे तो दुनियाँ उजडने लगी ॥
प्रेमकी बातें ॥ ३ ॥
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