( तर्ज - ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )
सबके कदम को मिलाके चलो ।
भारत की प्रीती बढाके चलो || टेक ||
छुआछूत का भेद न मानों ,
सब उद्योग हमारे ॥
दिलसे सचाई निभाते चलो ॥
भारत की ॥ १ ॥
संत और पंथ का नाहक झगडा ,
समझबूझकर छोडो ।
सबही प्रभुकी है संतानें ,
ग्यान - ध्यान चित जोडो ।
दिन - दुखियों को खिलाते चलो ||
भारत की ॥ २ ॥
चाहे होगा धर्म किसीका ,
वर्म सभी का एकी ।
मानवता ही सबने बोली ,
निंदा करो न किसीकी ॥
राष्ट्रीय एकी जगाते चलो ॥
भारत की ॥३ ॥
भारत के बालक सारे ही ,
आजादी की सेना ।
ऊँचा हो चारित्र्य सभीका ,
तुकडया का है कहना ॥
सारी मुसिबत हटाते चलो ॥
भारत की ॥४ ॥
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