( तर्ज छन्द )
मैं भी हूँ , मजदूर प्रभूका ,
खबर दिलाने आया हूँ ।
कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,
दोनों काम सजाया हूँ || टेक ||
क्या - क्या होता है कलजुगमें
और भी कितना होना है ।
फेर नतीजा क्या निकलेगा ,
प्रेमसे यही सुनाना है ।
जिनकी आँखों नीन्द चढी है ,
वो विषयोंसे लंपट है ।
जो जागे हैं ग्यान - ध्यानसे
छूट जात सब झंझट है ॥
धर्म - नीतिसे रहो जगतमें ,
तब तो मैं गुण गाया हूँ ।
कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,
दोनों काम सजाया हूँ || १ ||
सत् - व्यवहार , चरित्र , शुभेच्छा ,
यहि सत्युगका बाना है ।
जिन - जिनसे यह सध जावेगा ,
उन्हें न धोखा पाना है . ॥
घुसखोरी , लुचपत - कटूताअी ,
जिनके मनमें नाच करे ।
उनके तो दीनही नहीं ज्यादा ,
जनता उनको साफ करे ॥
सुधरो अब तो दुनियावालों !
साची राह बताया हूँ ॥१ ॥
कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,
दोनों काम सजाया हूँ ॥२ ॥
गरिब अमिरपर जल जायेगा ,
अमिर कदर नहीं ।
बखत पडेपर दोनों रोये ,
राज्य करेगा बाध्य यही ॥
भूखी जनता बिगड पडेगी ,
जबके देश अराजक हो ।
लेकिन उनका समाधान क्या ?
नेताभी दिल घातक हो ॥
पर शत्रु तब घाव करेगा ,
बजा बजाकर गाया हूँ ।
कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,
दोनों काम सजाया हूँ ॥३ ॥
जनता का क्या कसूर होगा ,
व्यवस्थितीका रंग नहीं ।
पल - पल में बदलेंगे शासक ,
राजनीति का ढंग नहीं ॥
गुंडे - पंडे - डाकू सारे ,
गजब करेंगे दया नहीं ।
इज्जतदारों की भगदड है ,
अबतक किसने किया नहीं ॥
तुकडयादास कहे- नहीं टलता ,
सुनो सन्देशा लाया हूँ ।
कुछ लाया हूँ , कुछ ले जाऊंगा ,
दोनों काम सजाया हूँ ॥४ ॥
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