( तर्ज - छंद )
यही ग्यान भाता है हमको ,
खल - कामीको बोध करो ।
नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,
उनकी शंका दूर करो ॥ टेक ॥
जन - साधारण में घुलमिलकर ,
उनको अपना कर डालो ।
काम करो उनके सच दिलसे ,
अपनापन ये हर डालो ॥
जिनको संगत ही नहिं पायी ,
तब तो उनका दोष कहाँ ?
बचपनसे भटके विषयों में ,
फिर उनको अफसोस कहाँ ??
समझ - समझकर धर्म सिखाओ ,
फिर समझाकर शूर करो
नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,
उनकी शंका दूर करो ॥१ ॥
जो जिनका हो प्रश्न ,
उन्हीको उत्तर दो अच्छे मनसे ।
वह भी साथी रहे हमारे ,
क्यों छोडोंगे अवगुण से ??
भोलेभाले उपासकोंको ,
कोई भी चेला करते ।
मूर्ख समझकर तर्कवाद से ,
मुंह फेरे मनमें डरते ॥
इसी नीतसे कितने खोये ,
इसका फेर विचार करो ।
नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,
उनकी शंका दूर करो ॥ २ ॥
अछूत भी वैसेही करके ,
डाल दिये पर - धर्म गये ।
वहाँ गये और हुशार बनके ,
हमरे सरपर खडे रहे ॥
तुमरे घरमें कितने हैं
जो तत्वज्ञानसे चलते है ?
मैंने देखा ब्राह्मण भी तो ,
शराब पीकर झुमते है !!
इन सबको भी तैयार करके ,
देशके खातिर ले सुधरो ।
नास्तिक निंदक मित्र बनाकर ,
उनकी शंका दूर करो ॥३ ॥
अनधिकारीको ध्यान न देना ,
ऐसा ग्यान तुम्हारा है ।
फिर वो कैसे ग्यान रहा ,
जो ग्यानीको ही सहारा है ?
बिना पंथके तर नहिं सकता ,
ऐसा मंत्र तुम्हारा है ।
किसने दिलसे ही प्रभु गाया ,
क्या वह रहा गँवारा है ??
तुकडयादास कहे यह बातें ,
आज जमाने में न भरो ।
नास्तिक - निंदक मित्र बनाकर ,
उनकी शंका दूर करो ॥४ ॥
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