( तर्ज चाहूंगा मैं तुझे , सांझ सबेरे )
जाऊंगा मैं भी प्रभु की शरण में ,
होनेको पावन उन्हीके चरण में
कुछ भी ना और लूंगा ,
कुछ भी ना और लुंगा ॥ टेक ॥
सुख है तेरे , दुख है तेरे ,
जो कुछ होगा सबही तरे |
मिलजा एकबार , देखूं करके प्यार ।
कुछ भी ना और लूंगा ,
कुछ भी ना और लुगा ॥ १ ॥
ज्योती जगी है , दिलमें लगी है ,
बूझ न पाये , भूल ना जाये ।
यही बात , करूं साथ ,
पाऊँ बन के सार ।
कुछ भी ना और लूंगा ,
कुछ भी ना और लूंगा ॥२ ॥
मैं तू दोनों , एक ही मानो ,
तत्व पछानू, स्वासा बानू ।
झनकार , बलिहार ,
बिना बजाके तार ।
कुछ भी ना और लूंगा ,
कुछ भी ना और लूंगा ॥३ ॥
तुकडया गाये , मन उछलाये ,
यही होना है , निश्चय पाये ।
करदे , भरदे , जीवन की धार ।
कुछ भी ना और लूंगा ,
कुछ भी ना और लूंगा ॥४ ॥
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