( तर्ज - ज्योत से ज्योत जगाते चलो . )
प्रभु - भक्ती की बातें सुनाते रहूँ ।
गाते रहूँ और गँवाते रहूँ ! ॥ टेक ॥
यह दुनिया है अजब तमासा ,
आशा मनषा भारी ।
काम - क्रोध की ज्वालाओं में ,
जलते है नर - नारी ॥
मैं सत्सगत पाते रहूँ । गाते रहूँ ॥ १ ॥
जिनकी बानी अनुभव बोले ,
वहि हैं साथि हमारे ।
जिनकी स्वांसा तारी चढ़ी हो ,
सोऽहं की झनकारे ।
वही रंगमें रंग पाते रहूँ ।
गाते रहूँ ॥२ ॥
निंदा किसीकी , द्वेष किसीका ,
सुख - दुःख दोनों हारे ।
जो मिलता वह प्रेमी हमारा ,
प्रेमसे प्रेम निहारे ।
यही गुरूग्यान बहाते रहूँ ।
गाते रहूँ ॥३ ॥
यहि जीवन , मानव का है धन ,
जो चाहे फल पावे ।
तुकडयादास भरोसा उसका ,
और नहीं मन भावे ।
जनम - जनम गुण गाते रहूँ ।
गाते रहूँ ॥४ ॥
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