( तर्ज - हे नरा आंत बघ जरा )
क्यों धरता ऊँची आस ?
कर्म नहीं पास , रहे उदास
कहाँ सुख पाये ?
अरे तुझको तो जमराज
बुलाने आये ॥ टेक ॥
नहिं पढा कला ना गुण ,
रहा अवगुण ,
विषयकी धुन्द छायी है सरपे ।
आलसी बना और
घुमता है दर - दरपे ॥
नहिं मीठी मुखसे बात ,
सदा संगात , चोरकी जात ,
साथ ले आवे ।
तब तुझको घर में कौन बिठाने जावे ??
( तर्ज ) नहीं सुबो धुलाता मुंहको ।
फैलाता तन बदबू को
तुझे कौन पुकारे यहाँ ,
मरा भी कहाँ , पड़ा रहे वहाँ
रोज नहीं न्हाये ।
अरे , तुझको तो जमराज
बुलाने आये ॥ १ ॥
गुस्सेके मारे नूर , बिगड गया सूर ,
आँखें अनखूर लाल हैं तेरी ।
सब बदन बना बेढंग की थैली पूरी ॥
यह टेढेटाढे बाल , भूसके लाल ,
दिखे बेताल रहे अक्कड में ।
खाता है पान तब
बून्द पडे कपडे में ॥
( तर्ज ) नहिं मिली संगती सत्की ।
जो मिले शराबी मतकी ।
वाहवारे तेरा हाल , अजब बेताल ,
लगा है जाल छूट नहिं पाये ।
अरे तुझको तो जमराज
बूलाने आये ! ॥ २ ॥
कुछ समझ , बातको उमज ,
सिधा कर मगज , सीख सद्गुणको ।
तब तर जायेगा , छोडेगा अवगुणको ॥
ले मुखसे प्रभुका नाम ,
घूम सत् - धाम , संतकी सेवा ।
सब पाप कटेंगे , हरदम बोलो देवा '
( तर्ज ) ये देख जरा सज्जन को ।
कितना है संभाला मनको ॥
तुकडया कहे- तू भी बन ,
ऊँच कर मन , न जाये क्षण ,
भजन बिन- गाये ।
अरे , तुझको तो
जमराज बुलाने आये ! ॥ ३ ॥
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