( तर्ज कौतुक किती ऐकवावे देवाचे ? )
टेक रखी संकट में भक्तनकी ।
विषयनसे लाज बजायी मनकी ॥टेक ॥
मन के ही नचे , नाच रहा था तन भी ।
जब इन्द्रियों में जोर करे अवगुण भी ॥
मुश्किल थी , सद्विचार चिंतन की ! ॥ १ ॥
किसकी भी चली ना मन को स्थिर करे ।
साधन भी लाख किये , बनमें फिरे ।
मर्कट की नायी घुमे पलछीन की ॥२ ॥
जब हृदय काँप गया , कुछ न बना ।
तुकड्याने नाम तेरा लेके धुना ।
सफल हुआ कामनाएँ दर्शन की ॥३ ॥
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