( तर्ज - जय जय गुरु महाराज गुरु )
गुरु महाराजा गुरु , भजनकर ,
गुरु महाराजा गुरु ॥ टेक ॥ '
' गुरुदेव ' कहनेसे होता ।
ग्यान - पात्र यह तन बन जाता ।
संयमसे रहने लगता है
बनता अनुभव - तरू ॥
भजन कर . ॥ १ ॥
भक्ती , ग्यान , बैराग सुहावे ।
विषय- दंभ सारे हट जावे ।
नम्र सदा संतोंके पदमें
मिलता कल्पतरू ॥
भजन कर . ॥ २ ॥
अगम - निगम की राह भली है
सोऽहं की एक तार चली है ।
कुंडलिनी की ऊर्ध्व गती से
पहुँचे परात्परू ॥
भजन कर . ॥३ ॥
आत्मग्यान भंडार खुलेगा ।
सबमें ईश्वर दर्शन होगा ।
तुकड्यादास साक्ष देता है
वह है करुणा करू ॥
भजन कर || ४ ||
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