( तर्ज मेरे मनकी गंगा )
मेरा मन है गन्दा ,
करके हूँ शरमिन्दा मैं ।
बोल भगवन् बोल ,
दर्शन होगा की नहीं ॥ टेक ॥
जब - जब मैंने नाम लिया है ।
साथ दिया नहीं है मन नें ।
लोग नहीं तरसाये करके ।
जाकर बैठा था बन में ।
फिर भी नहीं मन माना ,
करके हुआ दिवाना मैं । बोल ॥१ ॥
किसने बोला प्राण चढाओ ।
योग किया पद्मासन से ।
नेती धोती बस्ती साधा ।
ध्यान किया था साधन से ।
काबूमें नहीं आया ,
कितने तीरथ न्हाया मैं । बोल ॥ २ ॥ आँखोंसे बहता है पानी ।
दिल धडके अनजानी है ।
तुकडयादास कहे , गुरु - किरपा ।
पार करे यह ठानी है ।
बेडा होगा पार ,
लीया चरणों का आधार मैं । बोल ॥३ ॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा