नमामि श्री गणराज दयाल !
करत हो भक्तनका प्रतिपाल ॥ टेक ॥
निशिदिन ध्यान घरे जो प्राणी ,
हरे सकल भवजाल ।
जन्म - मरणसे होत निराला ,
नहि लगती करमाल ॥ १ ॥
लंबोदर गजवदन मनोहर ,
गले फुलोंकी माल ।
रिध्दी सिद्धी चमर डुलावे ,
शोभत सेंदुर भाल ॥ २ ॥
मूषकवाहन त्रिशुल - परशुधर ,
चंदन झलक विशाल ।
ब्रह्मादिक सब ध्यावत तुमको ,
अरजे तुकड्या बाल ॥ ३ ॥
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