( तर्ज - नववधू प्रिया मी वावरते . )
भोग में सदा झुरता मरता ।
तू राम भजन क्यों नहीं करता ? ॥ टेक ॥
कहाँ किसीको शांति मिली है ? ।
जिनकी तृष्णा भोग बली है
छलबल - छलबल जीवन भर में
भागता भटकता है फिरता । तू . ॥१ ॥
जहाँ देखता , चंचल मन है ।
जैसे बन्दर उछले बन है ।
डगमग डगमग नैय्या डोले ।
शरमता भरमता , है भिरूता । तू . ॥२ ॥
चला जायेगा सत्संगत में ।
भाग खुलेंगे जाते रंगमें ।
तुकडयादास कहे , मेरी माने
उद्धरे जनम , रख भावुकता | तू ॥३ ॥
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