( तर्ज - नववधू प्रिया बावरते )
बोलना अधिक नहीं काम करे ।
जन सुने न फिरभी , ध्यान धरे ॥ टेक ॥
कमी हो भाषण , शब्द मधुर हो
कहीं न निन्दा बेढब स्वर हो ।
सत्य उसीमें ही भरपूर हो
वही पढे , हृदय परिणाम करे ॥ १ ॥
सदा हो भाषा मेल मिलन की ।
कली खुले श्रोता के मन की ।
भावुक बनकर सब जन गणकी
कामना सुजनता नाम करे ॥ २ ॥
कमी हो भाषण , कृति अधिक हो ।
चरित्र ऊँचा तन कष्टिक हो ।
प्रसन्न मन आनन्द - रसिक हो
उनके सब कामही राम करे ॥ ३ ॥
वही है वक्ता , समाज नेता
सदा करेगा काम सुबीता ।
तुकडयादास कहे , वहीं जीता
अमर है न उनका नाम हरे ॥४ ॥
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