( तर्ज - कुणास ठाऊक नाही असे . )
मुझे ही मालुम कौन हूँ मैं
लाज के मारे मौन हूँ मैं ॥ टेक ॥
इतनी उमर गयी है बीती ,
फिरभी नहीं पायी प्रभू - भक्ति ।
पापों से मन छूट न पाता ,
स्वारथ में बेचैन हूँ मैं ॥ १ ॥
बाहर चाहे साधू कहते ,
अन्दर तो शैतान ही रहते ।
इनसे निपटारा नहीं पाया ,
तबतक दूधमें लून हूँ मैं ॥ २ ॥
नामके खातर मरमरता हूँ
किसका काम नहीं करता हूँ
अभिमानों के मारे झुरता ,
करके ही दुर्गुण हूँ मैं ॥३ ॥
तुकडयादास कहे - प्रभु मेरे ,
सदबुद्धी दे नामकी तेरे ।
अब तो मेरा अन्त सँवारे ,
जमघर का रह जाऊँ न मैं ॥४ ॥
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