कहे कृष्णनाथ अर्जुनको ,
आप अपनको जान प्यारे ! || टेक ||
जो आत्मरूप परकाशी ,
वहि सत्य जान अविनाशी ।
कभी जले न लागे फाँसी ,
काँप कफनका जा न प्यारे ! ॥१ ॥
जब टूटे नष्ट जड देही
तू निकल जाय उससेही
कुछ धोखा तुझको नाही
वह जो साँई जान प्यारे || २ ||
ये सब तेरे बनवाये
तू रुप न रुप समाये
ये कहाँके गोत लगाये
अपने रुप को जान प्यारे || ३ ||
मम अंशरुप परकासा
तब जीव रुप धर आशा
कहे तुकड्या एक तमाशा
कोउ न दुजा जान प्यारे || ४ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा