गुरुपद बिन जगमें साधन कोई ,
सिद्ध नहीं होवे || टेक ||
मूल अधार गुरुपद जानो ,
वहि सबको धोवे ।
कुछ न धरा पुस्तक में कोई ,
क्या पंडित रोवे ॥ १ ॥
छोड जगतकी आस दास ,
जब गुरुको बन जावे ।
साधन क्या , साधनको कर्ता ,
पलमें बर देवे ॥ २ ॥
सीधा मारग छोड़ा ,
अब क्यों मूल मटक रोवे ?
मान अरज अब मेरी ,
गुरु भज , पलमें तर जावे ॥ ३ ॥
बिना भाव बैठे कैसा ,
भव - पार चला जावे ?
तुकड्यादास कहे गुरुके बिन ,
मूरख भ्रम पावे ॥ ४ ॥
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