हरि - चरण स्मरण कर पापिया रे !
फिर भवसागर तर आपिया रे || टेक ||
क्या इन अंधपनोंमें भूला ,
मौत आय जब जात अकेला ।
जम - घरकी धर बाट ,
घाट वह साँपिया रे ॥ १ ॥
विषयन में क्यों जान रमाता ,
जम - घरकी फिर लाते खाता ।
कौन छुडावे आकरके ,
तेरो बापिया रे ॥ २ ॥
मायामों जाकरके लटका ,
विषयनका सुख देखत अटका |
काल बजावे फटका ,
हर भज जा पियारे ! ॥ ३ ॥
पैसा पैसा पल्ले गाँठा ,
अंतकाल सिर ढोबर फूटा ।
तुकड्यादास कहे अब
सुधरो मापिया रे ! ॥ ४ ॥
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