हरि - चरण कमल मुझे दावना रे !
यह बिगडी आस मिटावना रे ||टेक||
भवसागर - जल दुस्तर भारी ,
कैसे जाऊँ उससे पारी ?
मच्छ मगरकी मार ,
दूर हटवावना रे ॥ १ ॥
काम क्रोध लपटे तनमाँही ,
दाब दिनी मेरी चतुराई ।
कैसा पार लगूं ?
दिनपे चित लावना रे ॥ २ ॥
आशा मरघटमें भी जीती ,
रात - दीन कबहू नहि सोती ।
तनको खार किया ,
विषयोंमें भावना रे ॥ ३ ॥
चरण पकर अब आस धरूँ में ,
तुझबिन दूजा भास हरू में ।
तुकड्या को बर दे ऐसो ,
रुप पावना रे ॥ ४ ॥
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