ये आशकों के नजर में हरदम |
खुदा हमारा समा रहा है ॥टेक ॥
न किसको पाया घुमेसे काबा ,
न किसको पाया घुमेसे बुतखाँ ।
वह यार लूटा मला उसीने ,
जो संतसेवा कमा रहा है ॥ १ ॥
न किसने देखा नज़रसे अपने ,
न किसने देखा सपन में अपने ।
नज़रसे देखा उसीने उसको ,
जो धूनमें दिल रमा रहा है ॥ २ ॥
न तीरथोंमें बसा हुआ वह ,
न मुरतों में फँसा हुआ वह |
है आशकोंके सदा मगज़में ,
वह तेज सबमें भ्रमा रहा है ॥ ३ ॥
अगर तुम्हें हो खुदाकी आशा ,
क्यों जानते हो झूठा तमाशा ?
वह दास तुकड्याको लागा फाँसा ,
गलेमें मेरे घुमा रहा है ॥ ४ ॥
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