उन्हींकि दुनिया बँधी हुई है ,
जो देखकर भूलते नहीं है ||टेक ||
कहीं तो देखा राजमहलको ,
कहीं तो तुंबडी खात सही है ।
कहीं तो बैठे है हाथि घोडा ,
कहीं जुती पगहुमे नहीं है ॥ १ ॥
कहीं तो ज्ञातीमें ज्ञानचर्चा ,
कहीं तो शूरोंमे हाथ फर्चा ।
कहीं तो लडकोंके संग हर्षा ,
कहीं तो दीवाने नुरही है ॥ २ ॥
कहीं तो बादलके साथ खेला ,
कहीं तो देखा पड़ा अकेला ।
कहीं तो प्यारेका मार झेला ,
कहीं बिगारोहि हो रही है ॥ ३ ॥
कहीं तो पीरोंके साथ डोले ,
कहीं तो हकके दिदार खोले ।
कहीं तो बैठे बने है भोले ,
जो मौज आई वही सही है ॥ ४ ॥
सभी में रहकर रहे नियारे ,
ये ख्याल जिनके बने हैं पूरे ।
वही खुदाके बने है प्यारे ,
कभू न हारे जीते नहीं है ॥ ५ ॥
हुशारसे भी हुशार वे है ,
यह पारसे भी वह पार वे है ।
यह दास तुकडयाका सार यों है ,
जहाँपे दुनियाहि है नहीं है ! ॥ ६ ॥
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