खिलकत घूमा सारा |
खालिक न नज़र आता है ॥ टेक ॥
कहाँ उसोका पता मिलेगा ,
वही पूछता तुमको |
मिले जिगर दिलदार यार जब ,
मारूँ जूते जमको ॥ १ ॥
दिया दगा है बहुत दिनोंसे ,
कछु न कदर कर मेरी ||
संतसाधुसे यहि बर माँगूं ,
टुटे जन्मकी फेरी ॥ २ ॥
शास्त्रपुराणहि बाच - बाचकर ,
उमरी सारी खोई ।
उसमें , गर्व चढ . मनमाँही ॥ ३ ॥
काशी मथुरा जाकर देखा ,
सार्थक भूले मेरा |
देख पुजारी यों कहता है , '
तरा बाप अब तेरा ' ॥ ४ ॥
मेरी फिक्र अब उसको होगी ,
जो निजरूप बतावे ।
कहता तुकड्या सद्गुरु के बिन ,
बिरजा जनम गमावे ॥ ५ ॥
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