जो प्रीतके घरको पाचुके हैं ,
यह पार से भी वह पार वे है ।
कुफर कफरको दफा चुके हैं
दवा मोहब्बतको खा चुके है || टेक ||
न कम धर्मोका बंध उनको ,
न भेखकी कुछ भी लालसा है ।
लडे हुए हैं जिगरसे अपने ,
उज़रकी जूं को सफा चुके हैं ।। १ ।।
न द्रोह करनेको फुरसदी है ,
न लोभ करनेको वक्त फावे ।
हुए दिवाने जो धुनमें उनकी ,
नशा उन्हीं कीहि छा चुके हैं ॥ २ ॥
न ख्याल तनके वज़ा - वजूका ,
न देखे दिनको न रैन जिनको ।
वह दास तुकडचा उन्हींका प्यारा ,
जो प्रीतसे लौ लगा चुके हैं ॥ ३ ॥
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