हमारे दिलको वही पछाने ,
जो खास अपनेही दिलको जाने ।
या प्रीतसे हो चुके दिवाने ,
या द्रोहके घरको जाल छाने ॥
न जिसको हककी जमानती है ,
न प्रेम ईश्वरका भी रती है ।
कहाँ वह जाकर किसीको माने ,
जो द्रोहके भेदमें दिवाने ॥ १ ॥
न ज्ञान जिनको हुआ हुजुरका ,
न प्रेम जिनमें कहीं गुज़रका |
वे हैं जगतमें रहे - नहींसे ,
सदा हुशारीकी बात ताने ।
अगर किसी के वतनको जानो ,
तो खास अपने जतन पछानो ।
वह दास तुकड्या उन्हीं का प्यारा ,
मिटे है जिनके दुई - निशाने ॥ ३ ॥
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