यहाँ वहाँ क्या कहाँभी देखो
तो मेरे प्यारे का नूरही है ।
मस्जीदभी क्या ढँढोलो देवल ,
जिंधर उधर वह हुजुरही है || टेक ||
जिन्होंके नैनों में रंग छाया ,
उन्हींको प्यारा दिखे समाया |
जो जीव उसको न जानते हैं ,
हुजूर हाज़र तो दूरही है ॥ १ ॥
भला पुकारो जो नाम लेकर ,
यहाँ पुकारो या दूर जाकर ।
वही रँगीला है सबके अंदर ,
वह आशकोंका जरूरही है ॥ २ ॥
यह सारी झूठोंकी बातमी है ,
वह सार हक़ में कहाँ कमी है ।
यह दास तुकड्याकी लौ जमी है ,
तो इश्क मेरा अख़ ज़ूरही है । ॥३ ॥
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