दीननके दुखवार प्रभु ,
इक प्रेमहिके संग खेल रहा है ||टेक||
जात न देखत पाँत न देखत ,
देखपना सब भूल रहा है ।
अर्जुनके संग सारथ में खुब ,
चाहके साथ सुडोल रहा है ॥ १ ॥
द्रव्य न चाहत मान न चाहत ,
चाहपना सब छोड़ रहा है ।
धन्य सुदामा के चावल खावत ,
मित्रनके सुख बोल रहा है ॥ २ ॥
ज्ञान न देख अजान न देख
न देख पुजा अरु कर्म कहाँ है
कहे दास तुकड्या वह तो
एक निर्मल प्रेमसे झूल रहा है || ३||
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